Analysis of न्याय की सच्चाई।
न्याय की सच्चाई।
ठिठुरती सच्चाई
कर रही लड़ाई,
खुद को साबित
करने के लिए,
तो कभी झूठ से
जीतने के लिए।
कभी विरोध से
लड़ती दिखी,
तो कभी झुंझला के
खुद में घुटती रही।
कभी झूठ की
जीत होती दिखेगी,
तो कभी रोष की
आग जलती मिलेगी।
किन्तु यह रोष ही
सूरज बनेगा
न्याय के उजाले का।
धूमिल हो रहा है,
पर अँधकार से पहले
न्याय करना है
कि न्याय तो,
निर्जीव होकर भी
जीवन दे जाता है।
मत-भेद चलते रहे
कभी मुद्दों से
भटकते मिले
तो कभी उन्हीं
मुद्दों से बचते दिखे।
द्वेष के दावे भी
फिर पिघलने लगे,
जब नफरत भी
इंसाफ से डरने लगे।
Scheme | |
---|---|
Poetic Form | Palindrome |
Metre | 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 |
Characters | 1,298 |
Words | 134 |
Sentences | 1 |
Stanzas | 2 |
Stanza Lengths | 1, 32 |
Lines Amount | 33 |
Letters per line (avg) | 0 |
Words per line (avg) | 3 |
Letters per stanza (avg) | 0 |
Words per stanza (avg) | 54 |
About this poem
यह कविता महिलाओं की अस्मिता के पर आधारित है।
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Style:MLAChicagoAPA
"न्याय की सच्चाई।" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 15 Nov. 2024. <https://www.poetry.com/poem-analysis/195380/%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A5%A4>.
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